ग़ुस्सा

जब तक तेरा इतराना और ग़ुस्सा करना बाक़ी है...
अपने आप को इह्ल ए इल्म में शुमार ना कर
-‍ हज़रत अब्दुल क़ादिर जिलानी

दुनिया की ज़िल्लत पर ग़ुस्सा करता था,
अमन की तलाश में भटकता फिरता था,
एक दिन ज़माने ने ज़ुल्म करना छोड़ दिया,
उसी रोज़ जब ग़ुस्सा करना छोड़ दिया था
- में

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