क़िस्से

ना भूल सकना शाद नशाद क़िस्से ज़िन्दगानी के
दुआ है या लानत म'आलूम नहीं
ना खुल सकना हाल बहरहाल इतनी बेज़ुबानी से
दुआ है या लानत म'आलूम नहीं
- मुश्ताक़

कहानी शाद हो, नशाद हो, ग़ज़ल में भुलाता चला गया
हर ग़म, हर ख़ुशी का बयान ग़ज़ल में घुलाता चला गया
- मैं

कोशिश तो की थी के उसकी रुख़्सत को ना कभी आने देंगे,
थोडा हसता चला गया, थोडा रुलाता चला गया...
- नमन

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