यह रिश्ता - एक गुफ़्तगू

जाने अनजाने बन जाता है यह रिश्ता
गाने अफ़्साने बुन लेता है यह रिश्ता
अनजाने में सूखने दे वह महज़ इनसान,
जाने समझे बस जमे रहे वह फ़रिश्ता|
-मुश्ताक़

जाने अनजाने बस बन गया है यह रिश्ता,
गानों अफ़सानों से बुन लिया है यह रिश्ता,
पर आज डोर टूटा - आज मैं ख़ाना बदोश पतंग
मैं तो गुम जाऊँगा, तुम्हें बख़्शे फ़रिश्ता!
- मैं

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