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The fading amber
glow of the setting
sun holds promises
galore. Of softer
days, daisy mornings
and jasmine nights.
Unchaind time,
unbroken thoughts
tottering along
uninterrupted
roads. Man's ever
elusive quest to
find the perfect
dream-catcher.

- Nuzhat

***

आँखें तो खुली हैं, पर ज़हन है ख़्वाबिदा
शायद यही वजह से तसव्वुर है जाविदा
सैलाब-ओ-शमात क्या हावी हो जाएँ
यक़ीन जब कहे ख़ौफ़ से अलविदा अलविदा|

- मुश्ताक़

***

ख़्वाब ख़्वाब निगाहेँ हैं झुकी झुकी पलकों में,
राह रागह हमसफ़र है ज़िन्दगी के मस्कतों में,
कुछ ग़ाफिल सी बेख़याली सरपोश्त है 'तन्हा' मुझपर,
मेरा वजूद भी दे दिया शायद उसने
सदकाये फ़ित्र के साथ पिछली ईदों में|

- आशिक़ा 'तन्हा'

***

मेरे सपनों पे तुमने राज किया है,
कभी रूह को अफ़ज़ान तो कभी दिल को नाराज़ किया है|
तुम हो क्या आख़िर,
कोई भटकी शहजादी या आसमान से गिरी अप्सरा?
बड़ी मुशक़्क़त से देखा है
इस तिलस्मी शख़्सियत को ज़र्रा बर ज़र्रा,
एक हल्क़ी सी बर्क़ गिरा दो अब,
अपने रूह की झलक दिखा दो अब|
मेरे ज़हन में जंगल के जंगल शोला-नशीन हैं,
और आपकी हस्ती में पयवस्त
फ़रिश्ता परदा-नशीन है|
बस इन शरबती आँखों से एक-आध
क़त्रा सरक आए आब-ए-ज़मज़मा का,
यह जंग-ए-जलाली सा तकाज़ा सुलझ जाए हर दम का|
ज़माना क्यों न हो अंजुमन ख़ौफ़नाक दरिन्दों की,
है जो परवाज़ तुम्हारी रुहानियत में शौक़ परिन्दों की|

- मुश्ताक़

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क्यो‍कि हम जुड़े हुए हैं

हम जुड़े हुए हैं कुछ पाने कुछ खोने के लिए,
हम जुड़े हैं कभी हसाने कभी रुलाने के लिए,
हम जुड़े हैं रूठने मनाने के लिए,
हम जुड़े हैं कभी ख़ुशियाँ तो कभी ग़म जताने के लिए,
हम जुड़े हैं कुछ सही कुछ ग़लत बताने के लिए,
हम जुड़े हैं इस नुक्कड़ पर चलता फिरता तमाशा दिखाने के लिए,
हम जुड़े हैं इस हाथ से लेने और उस हाथ से देने के लिए,
हम जुड़े हैं कुछ दस्तूर कुछ रस्में निभाने के लिए,
हम जुड़े हैं अवाज़ की इस मन्दी ख़ामोशी बचाने के लिए,
हम जुड़े हुए हैं प्रिय ज़िन्दगी के हीरे चूमने के लिए|

- आशिक़ा 'तन्हा'
(IMHO, this ought to be taught in schools)

***

The idle mind is
exactly how Facebook makes
a lot of money.

- me

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"शिकायतें किस ज़बान से करूँ उनके न आने की,
यह एहसान क्या कम है कि वह मेरे दिल में रहते हैं?"
"मेरी झुकती आँखें - तेरे लिये किया सजदा हो,
मेरे हस्त-ए-लब - तेरे लिये लिखी ग़ज़ल के मिसरे दो"

- आशिक़ा 'तन्हा'

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At twenty my best buddies
were in their infirm eighties,
At sixty my bosom pals
are in their explosive twenties -
the perennial outisder.
My mind cannibalizes.

- Max

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हाल-ए-दिल उनसे कह चुके सौ बार,
अब भी कहने की बात बाक़ी कै|

- आशिक़ा 'तन्हा'

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बड़ी मुद्दत से याद किया था आपको
जब आपके लफ़्ज़ उभर आए थे ज़बान पर|
बड़ी मुशक़्क़त से भुलाया था आपको
जब आपकी चुप्पी छा गई थी ज़हन पर|
अब जो गुल खिलाए हक़ीक़त का कारवाँ
जो आँखों में न देखा आपने
होंठों पर ला बताएँगे हम बेहया|

- हर्षल पंड्या

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धूप है कभी, तो है साया कभी तेरा प्यार,
कर्ज़ चढ़ता है कभी तो हो जाता है कभी (बराबर) उधार,
टूट जाते हैं कभी मुझमें दोनों किनारे मेरे,
डूब जाता है कभी मेरा समन्दर मुझमें आफ़ताब को उतार|

- आशिक़ा 'तन्हा'

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