नफ़रत

मरकज़ ए हरम से तो नफ़रत ही की जा स्सकती है,
वहाँ पे अरमानों की कफ़न जो सिली जाती है

- मैं


ज़माने से नफ़रत ना करें तो क्या करें,
प्यार भरे दिल तोड़कर जो इतराता है|

-मुश्ताक़

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