Two nazms by Mushahid

आपके दीदार को निकल आये हैं तारे,
आपकी ख़ुशबू से छा गई हैं बहारें,
आपके साथ दिखते हैं कुछ ऐसे नज़ारे,
चुप होके बस चाँद भी आपही को निहारे

मेरे दिल से प्यार का दरिया निकल पड़े,
आँखों से सैलाब ए समन्दर निकल पड़े,
जिऊँगा मैं ऐसे इस जहाँ में कि सूरज
के जिस्म से भी पसीना निकल पड़े
- मुशाहिद अब्बास

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