ख़लिश: एक गुफ़्तगू

बिन बारिश बादल
जैसे बिनमनोकामना
का एक अस्तित्व

- मुश्ताक़

फूल बिना काँटे,
मुर्झाये यौवन को याद
करता यह बदन

- मैं

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