तुमसे मिलने से मुकर जाता हूँ

दो पल का साथ फिर ज़िन्दगी तन्हा, तुमसे मिलने से मुकर जाता हूँ|
दर्द फुग़ान हो जाने का डर इतना, तुमसे मिलने से मुकर जाता हूँ|

हवाएँ चुपके से कहती हैं कि मिलन की रुत आई तुम कहाँ हो,
पर तुमसे बिछडने का डर इतना, तुमसे मिलने से मुकर जाता हूँ|

तुम आओगी, बोलोगी, हँसोगी, बडबडओगी, चली जाओगी,
रुख़सत में तड़पने का डर इतना, तुमसे मिलने से मुकर जाता हूँ|

मेरे साँसों में अपनी ख़ुशबू छोड जाओगी, वह बहकाता रहेगा,
उस याद में सिसकने का डर इतना, तुमसे मिलने से मुकर जाता हूँ|

घर आओगी तो बातें मत करना, दीवारें सुनकर देर दोहराएँगी,
वह गूँज सुनकर रोने का डर इतना, तुमसे मिलने से मुकर जाता हूँ|

किसी चीज़ को हाथ मत लगाना, मेरा इबादतख़ाना भर गया है,
यह इख़लास चूकने का डर इतना, तुमसे मिलने से मुकर जाता हूँ|

तुम्हारी याद से पैर ज़मीन पर नहीं टिकते, तुम्हारा दीदार तौबा,
ख़्वाब टूटकर गिर जाने का डर इतना, तुमसे मिलने से मुकर जाता हूँ|

सोचता हूँ कि तुम्हारा हँसना या रूठना मेरे होश को भुला देगा,
तुमसे बातें करने का डर इतना, तुमसे मिलने से मुकर जाता हूँ|

सीरत की कमियाँ तुमसे क्या छुपाऊँ, यह आँखें ढूँड ही लेती हैं,
इन नज़रों में गिरने का डर इतना, तुमसे मिलने से मुकर जाता हूँ|

ऐ हसीन यह नाम तुम्हारा, इससे इतराने से नहीं थकते यह होंठ,
यह मिठास पिघलने का डर इतना, तुमसे मिलने से मुकर जाता हूँ|

तुम्हारी देहलीज़ पार करके लगता है के जन्नत में दाख़िल हुआ हूँ,
यह ख़्वाबगाह उजड़ जाने का डर इतना, तुमसे मिलने से मुकर जाता हूँ|

अपनी तारीफ़ किसी सुख़ानवर से करवाओ, मुझसे तो नहीं होगा,
अल्फ़ाज़ का साथ छूटने का डर इतना, तुमसे मिलने से मुकर जाता हूँ|

तुम्हारा हर नुख़्स सोने और चान्दी के वरक़ से छुपाया है मैंने,
यह नक़ाब उतरने का डर इतना, तुमसे मिलने से मुकर जाता हूँ|

ख़ानाबदोश को क्या मुकाम हासिल, मंज़िल हाज़िर होते भी हूँ फ़ना,
तुम्हे पाकर खोने का डर इतना, तुमसे मिलने से मुकर जाता हूँ|

Comments

Ozymandias said…
From Max on SMS:-
'dard barhkar fughaan na ho jaye
ye zameen na aasmaan ho jaye'
- Nida Fazli